Friday, March 9, 2012

छोटा सा बादल

स्मित मुस्कान हो,
    लाल आसमान हो,
        पलके उठे झुके,
            लब थर थराए रुके,
                पास तुम बैठी रहो,
                    लहराती आंचल. II1II

गुल मोहर खिले कहीं
    दो पल मिले कहीं
        और एक साथ गिने
            हृदय की धड़कने
                चांदनी ढके रहे
                    छोटा सा बादल.. II2II


****शिव प्रकाश मिश्र ******

              ( मूल कृति जुलाई १९८०)  

Thursday, March 8, 2012

मृग मरीचिका

आँखों का धोखा,
मंजिल
समझने की भूल,
जिसे अक्सर कर जाते है,
ठोकर लगनी होती है जहाँ ,
चाह कर भी नहीं संभल पाते है.
लड़खड़ाते है,
गिरते है ,
और
फिर उठ कर चल देते है .
यंत्रवत,
उसी राह पर ,
बंद होठों की पीड़ा 
और दर्द ,
स्वयं ही आत्मसात  कर ,
जैसे जो कुछ हुआ,
वह कुछ नया नहीं है ,
भुला देते है ,
जल्द ही बड़ी से बड़ी ठोकर ,
और दर्द का अहसास ,
और ,
फिर भटकने लगते है ,
नयी मरीचिकाओं के बीच .........

****** शिव प्रकाश मिश्र **********