Monday, October 14, 2013

धन्यवाद


बहुत कृतघता
और विनम्रता से,

मन की ऊंचाइयों और

दिल की गहराइयों से,

हमारा प्रथम धन्यवाद,  

उन व्यक्तियों को,

जिन्होंने हमें जीवन दिया

और हमारे  माता-पिता

बनने का दायित्व ग्रहण किया,

संतान बनने का

सौभाग्य हमें  दिया,

रिश्तों का बोध दिलाया,

माँ की महानता और

बाप की विशालता

का अहसास कराया,

पालन पोषण किया,

वह सब कुछ दिया ,

मेरे विचार मे,

जो चाहिए था,

एक अबोध अजनबी अनजान को,

इस संसार मे॰  

ममता, प्यार, दुलार,

भाषा और संस्कार,

मानव मूल्य, शिक्षा और सुविचार,

और दिया पूरा घर संसार ॰   


धन्यवाद !

हमारे पितामहों, प्रपितामहों और पूर्वजों को,

जिनके अंश है हमारी संरचना में,

और रोम रोम मे हैं साकार,

उनके  

वैज्ञानिक आविष्कार ,

विकाश के प्रयासों की आधारशिला,

जीवन के सूत्र और जीने की कला,

शक्ति, सामर्थ्य और ईश्वर मे आस्था,

प्रकृति से संबंध और धार्मिक व्यवस्था ,

उनकी

सनातन परंपरा अक्षुण्ण और ज्वलंत है,

जो आज भी

हम सब के अंदर जीवंत है ॰॰


धन्यवाद !

परमात्मा का,

ईश्वर का,

या उस अदृश्य शक्ति का, 

जिसने हमें वह सब कुछ दिया,

जो कल्पना से परे है,

ये गंगा सी निर्मल, पावन नदियां,

मनमोहक, मनोरम, स्वर्गसम वादियाँ, 

ये बादल, ये झरने,

ये असीमित आसमान,

ये हिमालय से पर्वत,

ये मरुस्थल और रेगिस्तान

ये सर्दी,  गर्मी,  वर्षा और बसंत,

ये फल,  फूल, पत्ते और अनंत,

ये सूर्य की रोशनी

और चन्दा की चाँदनी,

ये सितारों का उपवन

जैसे  झिलमिल छावनी,

ये मनमोहक छटाये,  

मलयागिरि से आती 

सुंदर सुरभि हवाएँ,

और सावन की घटाएँ,   

ये फूलों से पटी घाटियां,  

फलों से लदी डालियाँ

ये जड़ी, बूटी और  वनस्पतियाँ,

ये अनोखे दुर्लभ जीव जन्तु

अनगिनत खनिज, अनमोल रत्न,

ये कृषि और लहलहाती फसलें,

कहने को हम कुछ भी कह लें,

पर माँ की तरह

सबका पालन करती है

ये धरती माता और   

अपने आँचल में धारण करती है  

पर्वत  की ऊंचाई और

सागर की गहराई

हमारे  लिए ,

हम सब के लिए,

और समूची मानवता के लिए,

बहुत बहुत धन्यवाद ! मां, 

इस सबके लिए ॰॰॰  

काश !

सब को हो इसका अहसास ,

कि

कितना कुछ है खास,

हम सबके पास,

पर हम भटकते है मृग की तरह,

उन कामनाओं के लिए

जीवन मे जिंनका कोई अंत नहीं,

खोजते हैं तृष्णा के रास्ते ,

और  होते संतुष्ट नहीं ॰

शोक करते हैं, उसके लिए,

जो नहीं होता हमारे लिए निर्धारित,     

क्यों बनते हैं हम ?

कृतघ्न, अशिष्ट और अमर्यादित॰

धन्यवाद ! भी नहीं देते उसको,

जिसने इतना कुछ दिया है,

और बदले में कुछ भी नहीं लिया है ॰

भूख का महत्व हो सकता है,

जीने  के लिए,

पर जीवन क्यों अपरिहार्य हो ?

सिर्फ पेट भरने के लिए ॰

हमें सीखना चाहिए,

जो है उसमें खुश रहना चाहिए,

जो मिला है, पर्याप्त भले न हो,

पर कम नहीं है, मानना चाहिए,

हम पूर्ण संतुष्ट भले न हों,    

पर जो भी मिला है, 
उसके लिए 
धन्यवाद !
तो देना चाहिए ॰ ॰ ॰ ॰

-    शिव प्रकाश मिश्रा

*******************************************************

Thursday, October 3, 2013

रिश्ते और रास्ते

रिश्ते प्यार के,

 रस्ते पहाड़ के ,

 आसान तो बिल्कुल नही होते,

 कभी आंधी, कभी तूफान,

 कभी धूप, कभी छाँव ,

 तो कभी साफ आसमान नहीं होते . 

 थोड़ी सी बेचैनी से

 सैलाब उमड़ते हैं  अक्सर,

 आंखे भी निचोड़ी जाय,

 तो कभी आँसू नहीं होते

 प्यार एक धर्म है,

 मर मिटने का ,

 जिसके हर कर्म मे मर्म है

 पर हर कर्म के

 विधि, विधान नही होते,

 भावनाओं की भी ,

 बैलेंस शीट बनाता है कोई ?,   

 लाभ भी अनुपातिक होगा ,

 ये आश लगाता है कोई ?,

 कौन समझा है किसे ?

 ये समझना तो बहुत मुश्किल है,

 और समझेगा भी  कितना ?

 ये  हालात पर निर्भर है ,

सच्चाई क्या है ?

 कुछ  अहसास  नहीं देती  है 

 अब तो अपनी ही नजर,

 काफी कमजोर हुई लगती है,   

 दिल है बहुत बोझिल,

 मगर गनीमत है, कुछ है इसमे,

 वरना  बेचैन शहर है ये ,

 अपने खालीपन मे ॥   

 ***********************

          - शिव प्रकाश मिश्रा

तुम्हारी हंसी...

है फूलों सी नाज़ुक
तुम्हारी हंसी ,
कितनी प्यारी दुलारी
तुम्हारी हंसी,
जिन्दगी धूप में
तप रही रेत है ,
प्यार की छाँव
देती तुम्हारी हंसी,
कोई सावन कहीं
झूम के आ गया,
है फुहारे सी झरती,
तुम्हारी हंसी,
मन पपीहा सा
व्याकुल फिरे घूमता,
है स्वाति की बूँद
तुम्हारी हंसी,
चाँद बदल में
जाने कहाँ जा छिपा,
है सितारों का उपवन
तुम्हारी हंसी,
एक उफनती नदी
तोड़ बंधन चली ,
मोहक झरने बनाती
तुम्हारी हंसी,
मोर जंगल में नाचे
पृकृति खिल उठे ,
और घुँघरू बजाती
तुम्हारी हँसी ,
मृग बन मन भटक
ढूद्ता फिर रहा ,
कोष कस्तूरी का है
तुम्हारी हंसी ,
सुर्ख जोड़ा पहिन
एक दुल्हन सजी,
कंगनों सी खनकती
तुम्हारी हंसी,
एक तूफ़ान आकर
कहीं थम गया,
शोख बिजली गिराती
तुम्हारी हंसी,
शब्द ओंठो पे आयें
न आया करें ,
मूक आमंत्रण देती
तुम्हारी हंसी,
दिल की अमराइयों में
बसंत आ गयी,
कूक कोयल की मीठी
तुम्हारी हंसी,
तुम रहो न रहो
ये रहेगी हंसी,
रोज मुझको रुलाती
तुम्हारी हंसी...

****************
--शिव प्रकाश मिश्र

~~~~~~~~~~~~~~~