हर तरफ नफरत ही नफ़रत फैलाई गयी है यहाँ,
दम घुटता है, साँस लेने में भी डर लगता है.
ढूंड़ता हूँ कि मिल जाय मोहब्बत का ढाबा कहीं,
भूख से डरता हूँ , कुछ खाने का मन करता है.
हो रहा जांच एजेसियों का दुरूपयोग यहाँ,
अब तो कुछ करते नहीं, फिर भी डर लगता है.
मीडिया बिक चुकी , खतरे में हैं संविधान यहाँ ,
क्या करें इस देश में रहने में भी डर लगता है.
न रोजगार है और न बचा आय का साधन कोई ,
अब तो भाई चारे की खेती से भी डर लगता है.
नफ़रती बाजार में खोली है प्यार की दुकान हमने,
न जाने क्यों खरीदार को आने में भी डर लगता है.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
- शिव मिश्रा
दिनांक- ५ जनवरी २०२३
Absolutely right sir
ReplyDelete