Thursday, October 3, 2013

तुम्हारी हंसी...

है फूलों सी नाज़ुक
तुम्हारी हंसी ,
कितनी प्यारी दुलारी
तुम्हारी हंसी,
जिन्दगी धूप में
तप रही रेत है ,
प्यार की छाँव
देती तुम्हारी हंसी,
कोई सावन कहीं
झूम के आ गया,
है फुहारे सी झरती,
तुम्हारी हंसी,
मन पपीहा सा
व्याकुल फिरे घूमता,
है स्वाति की बूँद
तुम्हारी हंसी,
चाँद बदल में
जाने कहाँ जा छिपा,
है सितारों का उपवन
तुम्हारी हंसी,
एक उफनती नदी
तोड़ बंधन चली ,
मोहक झरने बनाती
तुम्हारी हंसी,
मोर जंगल में नाचे
पृकृति खिल उठे ,
और घुँघरू बजाती
तुम्हारी हँसी ,
मृग बन मन भटक
ढूद्ता फिर रहा ,
कोष कस्तूरी का है
तुम्हारी हंसी ,
सुर्ख जोड़ा पहिन
एक दुल्हन सजी,
कंगनों सी खनकती
तुम्हारी हंसी,
एक तूफ़ान आकर
कहीं थम गया,
शोख बिजली गिराती
तुम्हारी हंसी,
शब्द ओंठो पे आयें
न आया करें ,
मूक आमंत्रण देती
तुम्हारी हंसी,
दिल की अमराइयों में
बसंत आ गयी,
कूक कोयल की मीठी
तुम्हारी हंसी,
तुम रहो न रहो
ये रहेगी हंसी,
रोज मुझको रुलाती
तुम्हारी हंसी...

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--शिव प्रकाश मिश्र

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2 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता है।आप अपनी कविता की प्रति भेजें मैं उसे अपने वेबसाइट पर समीक्षा दूंगा।आप भी हमारे बलॉगरhttp://newwebearnnings.blogspot.com पर अपना कमेंट करें।मेरा पता रतिकांत सुमन मकान न-३०वार्ड न-२९ वर्मा मेडिकल हॉल चित्रगुप्त नगर सहरसा बिहार ८५२२०१ मोबा-८००२१७०५७५ धन्यवाद।

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