सर्दियों सा इश्क हमारा ,
ढूंढता है,
प्यार की वही गुनगुनी धूप ,
चहकता, इठलाता, इतराता यौवन ,
पहाड़ी के उस छोर पर ,
जहां सूरज के साथ
प्रेम की किरण उगी थी,
प्रेम की किरण उगी थी,
और प्रस्फुटित हुआ था,
रिश्तों का संसार,
रिश्तों का संसार,
मैं वहीं हूँ ,
मैं वही हूँ,
वही हवायें हैं ,
वही फिजायें हैं ,
और
सर्द सुबह है,
सर्द सुबह है,
नहीं है तो बस !
तुम.....
और …साथ… तुम्हारा ….
****शिव प्रकाश मिश्रा *****
जनवरी 15, 2020
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