भयंकर शीत लहरी भी करे क्या,
तपन सब मुझ में समाई है,
सूर्य की आंच में रखा है क्या,
आग अब दिल
में जलाई है,
चित्रकारों से बनेगा क्या,
राशि अंतर में बसाई है,
बेला, चमेली में अब बचा क्या है
सुगंध सब मन में समाई है,
गमों का ज्वालामुखी फूटे तो क्या,
खुशी जब रग-रग में छाई है,
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शिव प्रकाश मिश्रा
मूल कृति अप्रैल १९७८
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