सरे बाज़ार में इमान धरम बेच रहे है,
बोलिया बोल कर इन्सान का मन बेच रहे है !
रक्त अधरों पे उदित हास क्या करे कोई,
साजे गम फ़ख्र के आने की तपन देख रहे हैं !!
मांगने पर नहीं मिलता था कभी कुछ जिनसे,
धरम के नाम पर आकर के रहम बेंच रहें हैं !
आश भगवान से इन्सान क्या करें कोई,
आज इन्सान ही इन्सान को खुद बेंच रहे हैं !!
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----- शिव प्रकाश मिश्र -------------
मूल कृति मई १९८३
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बोलिया बोल कर इन्सान का मन बेच रहे है !
रक्त अधरों पे उदित हास क्या करे कोई,
साजे गम फ़ख्र के आने की तपन देख रहे हैं !!
मांगने पर नहीं मिलता था कभी कुछ जिनसे,
धरम के नाम पर आकर के रहम बेंच रहें हैं !
आश भगवान से इन्सान क्या करें कोई,
आज इन्सान ही इन्सान को खुद बेंच रहे हैं !!
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----- शिव प्रकाश मिश्र -------------
मूल कृति मई १९८३
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