Tuesday, February 23, 2016

सूखा और किसान

कुछ कह रहे हैं,
सूखे की आग में
जलती फसलो को देख,
जी को जला कर
 जी रहे है.
डीजल केरोसीन डीलरो की तरह
इन्द्र का स्टॉक में नहीं है की तख्ती देख
 रो रहे हैं.
भूख से बिलखते सिसकते आदिवासी,
 बेबस मजबूरी में
जड़े ही खा रहें है,
करके हड़ताल  नज़रबंदी में,
 नशा बंदी में ,
भंग छान ,
मस्ती में लम्बी तान,
 इन्द्र अब भी सो रहे हैं !!
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     - शिव प्रकाश मिश्र
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मूल कृत - १९७९, ६ नवम्बर १९७९ को दैनिक वीर हनुमान औरय्या में प्रकाशित 

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