Tuesday, February 23, 2016

कौन हूँ मैं ?

कौन हूँ मैं, कहाँ से गुजरता रहा ?
न पूंछो अभी तक क्या करता रहा ?

एक चाहत लिए दावं रखता रहा ,
शह उनकी पे ही मात खाता रहा.
हार कर मैंने खोया नहीं हौसला,
जीत की हार होना नहीं फैसला.
आज ऐसा नवी बन गया अजनवी,
रोज़ जिसको हृदय में बिठाता रहा.
न  पूंछो अभी तक क्या करता रहा ?.......१.


एक पागल पथिक सा फिर दर बदर,
कितनी मंजिल चली कुछ नहीं है खबर,
ताक पर आश सपने सजाता भी क्या ?
नीर पलको पे आँखें चुराता न क्या ?
आज ऐसी कहानी नहीं कह सका ,
शब्द जिसके लिए दूड़ता फिर रहा.
न  पूंछो अभी तक क्या करता रहा ?.......२.
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        - शिव प्रकाश मिश्र
           shive prakash mishra
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