Tuesday, February 23, 2016

तपन सब मुझ में समाई है,

भयंकर शीत लहरी भी करे क्या,
          तपन सब मुझ में समाई है,

सूर्य की आंच में रखा है क्या,
        आग  अब  दिल में जलाई है,

चित्रकारों  से बनेगा क्या,
            राशि अंतर में  बसाई  है,

बेला, चमेली में अब बचा क्या है
         सुगंध सब मन  में समाई है,

गमों का ज्वालामुखी फूटे तो क्या,

        खुशी जब  रग-रग में छाई है,

______________________________

            शिव प्रकाश मिश्रा

                मूल कृति अप्रैल १९७८ 
_____________________________________________

No comments:

Post a Comment