भावनाएं जलती हैं,
कभी ...
सिद्धांतो के संकुचित घेरे में,
जैसे किसी प्रेमी का पत्र,
दिन के अँधेरे में.
चूर चूर होता है व्यक्तित्व ,
या संपूर्ण अस्तित्व,
जीवन में कई बार,
हल्की सी हिचकी
ले लेती है भूकंप का स्वरुप,
और आस्था के आयाम,
लेते है एक नयी हिलकोर,
पतझड़ सी बिखरती है आशाए,
और चुभते है काँटों से उपदेश,
फीके लगते है
सैद्धांतिक आदर्श,
और अविस्मर्णीय अवशेष ,
दुखता है रोम रोम,
अनजानी पीड़ा में ,
होते है सूने सपने सुनहले,
जब परम प्रिय सा
कुछ खोता है,
अप्रत्यासित,
अकाल्पनिक ,
और वक़्त से पहले.
*******************
शिव प्रकाश मिश्र
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कभी ...
सिद्धांतो के संकुचित घेरे में,
जैसे किसी प्रेमी का पत्र,
दिन के अँधेरे में.
चूर चूर होता है व्यक्तित्व ,
या संपूर्ण अस्तित्व,
जीवन में कई बार,
हल्की सी हिचकी
ले लेती है भूकंप का स्वरुप,
और आस्था के आयाम,
लेते है एक नयी हिलकोर,
पतझड़ सी बिखरती है आशाए,
और चुभते है काँटों से उपदेश,
फीके लगते है
सैद्धांतिक आदर्श,
और अविस्मर्णीय अवशेष ,
दुखता है रोम रोम,
अनजानी पीड़ा में ,
होते है सूने सपने सुनहले,
जब परम प्रिय सा
कुछ खोता है,
अप्रत्यासित,
अकाल्पनिक ,
और वक़्त से पहले.
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शिव प्रकाश मिश्र
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