Tuesday, February 23, 2016

कैसे.. कैसे.. लोग

खुद मरने की मन्नत मनाते हैं लोग,
हंसते हंसते भी रोते से रहते है लोग .

सूना घर है कहीं,  कोई रहने वाला नहीं  ,
छत में रहने को कितने तरसते हैं  लोग.

कोई  अपना नहीं,  कोई     सपना नहीं,
कितने अपने भी सपने से लगते हैं, लोग.

फासले हैं  बहुत फिर भी  कितने करीब ,
कितने अपनो    से दूरी बनाते   हैं लोग .

क्यों ज़नाज़ा गया ? जानते  हैं  सभी,
फिर भी मरने से कितना डरते हैं लोग.

ऐ सितम अब शिव पर क्या भरोसा करे,
अपनी छाया से भी अक्सर डरते हैं लोग..
________________________________
             - शिव प्रकाश मिश्र
_____________मूल कृति जून १९८० _________
सर्व प्रथम दैनिक वीर हनुमान औरैया में प्रकाशित 


No comments:

Post a Comment