खुद मरने की मन्नत मनाते हैं लोग,
हंसते हंसते भी रोते से रहते है लोग .
सूना घर है कहीं, कोई रहने वाला नहीं ,
छत में रहने को कितने तरसते हैं लोग.
कोई अपना नहीं, कोई सपना नहीं,
कितने अपने भी सपने से लगते हैं, लोग.
फासले हैं बहुत फिर भी कितने करीब ,
कितने अपनो से दूरी बनाते हैं लोग .
क्यों ज़नाज़ा गया ? जानते हैं सभी,
फिर भी मरने से कितना डरते हैं लोग.
ऐ सितम अब शिव पर क्या भरोसा करे,
अपनी छाया से भी अक्सर डरते हैं लोग..
________________________________
- शिव प्रकाश मिश्र
_____________मूल कृति जून १९८० _________
हंसते हंसते भी रोते से रहते है लोग .
सूना घर है कहीं, कोई रहने वाला नहीं ,
छत में रहने को कितने तरसते हैं लोग.
कोई अपना नहीं, कोई सपना नहीं,
कितने अपने भी सपने से लगते हैं, लोग.
फासले हैं बहुत फिर भी कितने करीब ,
कितने अपनो से दूरी बनाते हैं लोग .
क्यों ज़नाज़ा गया ? जानते हैं सभी,
फिर भी मरने से कितना डरते हैं लोग.
ऐ सितम अब शिव पर क्या भरोसा करे,
अपनी छाया से भी अक्सर डरते हैं लोग..
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- शिव प्रकाश मिश्र
_____________मूल कृति जून १९८० _________
सर्व प्रथम दैनिक वीर हनुमान औरैया में प्रकाशित
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