रिश्ते प्यार के,
रस्ते पहाड़ के ,
आसान तो बिल्कुल नही होते,
कभी आंधी, कभी तूफान,
कभी धूप, कभी छाँव ,
तो कभी साफ आसमान नहीं होते .
थोड़ी सी बेचैनी से
सैलाब उमड़ते हैं अक्सर,
आंखे भी निचोड़ी जाय,
तो कभी आँसू नहीं होते ,
प्यार एक धर्म है,
मर मिटने का ,
जिसके हर कर्म मे मर्म है
पर हर कर्म के
विधि, विधान नही होते,
भावनाओं की भी ,
बैलेंस शीट बनाता है कोई ?,
लाभ भी अनुपातिक होगा ,
ये आश लगाता है कोई ?,
कौन समझा है किसे ?
ये समझना तो बहुत मुश्किल है,
और समझेगा भी कितना ?
ये हालात पर निर्भर है ,
सच्चाई क्या है ?
कुछ अहसास नहीं देती है ,
अब तो अपनी ही नजर,
काफी कमजोर हुई लगती है,
दिल है बहुत बोझिल,
मगर गनीमत है, कुछ है इसमे,
वरना बेचैन शहर है ये ,
अपने खालीपन मे ॥
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- शिव प्रकाश मिश्रा
Aap ki Kavita ne man ki gahraiyon ko Chu liya.....mabmohak....adbhut....adwitiya....
ReplyDeleteधन्यवाद
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