Friday, May 1, 2020

एक कंधे की चाहत

क्या कभी कोई
अपना सिर
अपनी ही गोद में रख कर सोया है ?
या 
अपना सिर
अपने ही कंधे पर रख कर रोया है ?
क्यों ? 
कोई ?
नहीं  चाहता कभी,
अपना सुख दुःख,
स्वयं में समेटे रखना,
अपने में जीना,
अपने में मरना, 
और गुमनामी लपेटे रखना,
क्यों ?
इसीलिए
क्या 
रिश्ते  जन्म लेते हैं ?
और
हमेशा  अहम् होते हैं ?
रिश्ते, 
अंकुरित होते हैं ?
उगते हैं ?
पनपते हैं ?
बनते हैं ?
या प्रकट होते हैं ?
पता नहीं,
क्यों ?
परन्तु 
हमेशा अच्छे लगते हैं,
और जरूरी भी,
क्यों ?
शायद..कुछ को 
हम कभी नहीं समझते,
और कोशिश,
भी नहीं करते. 
भटकते है, 
लिये  
एक कंधे की चाहत,  
और
अपना कन्धा खाली रखने की आदत,  
क्यों ?
बने रहना चाहते हैं हम ,
बीज
सब  आत्मसात हैं जिसमे,
ऐसा रिश्ता, 
जड़, तना और पत्ते
सब साथ साथ है जिसमे,
क्यों ?
फिर सब मिल बनाते है 
एक  नन्हा पौधा,
बढ़ना जिसकी  नियति है,
और
बढ़ कर दूर दूर हो जाना,
या
दूर दूर होकर  बढ़ जाना,
जिसकी परिणित है,
क्यों ?
दोहराया जाता है, 
बार बार -
ये  इति हा आस  ? 
'इतिहास'  जो  नहीं है.
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 -  शिव प्रकाश मिश्रा
  

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