Sunday, March 22, 2020

भविष्य ......


कैसे मुस्कान हो ?
निरद्वेग अधरों पर,
बादलों सा मिलना,
निकलना भी छूट गया .

जीवन के कतिपय अंश,
स्वस्ति के लिए हव्य,
आशातीत बेड़ा एक,
सपना सा टूट गया ..

कच्ची पगडंडी सी,
किस्मत की रेखाएं,
धूमिल आशाओं में,
वर्तमान भटक गया.

अतीत के दलदल में
डूबती रहीं तस्वीरें ,
कल्पना का यान,
जीर्ण दूब में अटक गया ..

शक्ति के समन्वय में,
शान्ति के प्रणेता से,
वर्षों का खोटा सिक्का,
 गांठ से निकल गया ..
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- शिव प्रकाश मिश्रा
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मूल कृति १० सितम्बर १९८०
(सर्व प्रथम स्वतंत्र भारत कानपुर में पकाशित )

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